Monday, September 8, 2008

अमेरिका में एक साल

कल एक साल हो गया यहाँ आए हुए,
एक साल!
आया था तो काफी कुछ सोच के आया था- ये करूँगा, ये नही करूँगा,
अब लगता है की कुछ भी तो नही किया,
सब कुछ उतना ही तितर-बितर है जितना पहले था
या फ़िर पहले से कहीं बदतर !

ज्यादा नही सोचता,
अगर आस्तिक होता तो भगवान् का किया-धरा समझ अपने पल्ले झार लेता,
पारिवारिक होता तो परिवार और जिम्मेदारियों की दुहाई देता,
सामाजिक होता तो बन्धनों की बात करता,
मैं इनमें से कुछ भी तो नहीं हूँ|
कवि हूँ, सच कहूँ तो "था" - अब कविताओं के लिए लय नही मिलती,
वो कला भी जाती रही |

इस भावना के लोग यहाँ शोध छात्र कहलाते हैं, शोधने की सुध तो कब की जाती रही,
अब तो सुध की शोध में रात-दिन गुजरते हैं,
वक्त बीतता हैं, मौसम भी,
पिछला जारा याद कर के सिहरता हूँ- बहुत बरफ गिरी थी यहाँ,
फ़िर से थोडी थोडी ठण्ड शुरू है- शायद यह साल और भी बदतर होगा,
कट जाएगा ये भी- अभी से क्या सोचना?

दोस्तों को शादी की जल्दी है- हर दिन एकाध मेल आते हैं,
"मेरी शादी है फलां-फलां तारिख, फलां-फलां जगह, फलां-फलां कुमारी से.........
जरुर आना"
साथ में गणेश जी का चित्र "श्री गणेशाय नमः!"
फर्क नही कर पता की आख़िर ये बचपन की जवानी है-या फ़िर जवानी का बुरहापा,
कोई अपने पाँव पे खड़े होने की कोशिश में है और किसी को दुबारा पैदा होने की जल्दी है|
देखूं तो सब कुछ वैसा ही है जैसा था, या फ़िर इतना बदल चुका की नए-पुराने की पहचान जाती रही,
कोशिश जारी है |

घर से सवाल आते हैं-दोस्तों के, सम्बन्धियों के
"और कितने साल?"
सवाल जाना पहचाना है और जवाब असंभव
टाल रहा हूँ- सुध की शोध जारी रही
देखते हैं अगले साल कहाँ तक पहुँचता हूँ?