दूर आसमान में दिखते
बादल के दो टुकरे
यथावत- अपनी जगह पे अर्सों से
खिड़कियों से धीमे-२ आती किरणे
रोज- सुबह, दोपहर- अनवरत
न आग की तपिश, न नीर सी शीतल
कभी-२ बर्फ गिरती है
पर वो भी-गुनगुनी सी
अब मौसम नही होते!
Monday, August 24, 2009
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