Friday, June 27, 2008

कुछ शब्द

मेज पर संजो के रखे पन्ने-
कभी बिखरे हुए थे।

स्वप्न मेरे, शब्द मेरे , ढूंढ कर उसने निकाले
संजो के लिखी एक कविता
और मेरी ही रचना भीख दे गयी मुझे

सोचा पूछूं मैं उससे -
कि किस हक से आखिर,
चुरा ले गयी कुछ शब्द मेरे
जो कहना चाहा था मैंने
कह गयी ख़ुद ही वो मुझसे ।
पर आज देर हो गई है !

कल मिलूँगा तो जरुर कहूँगा-
कि टूटने दो स्वप्न मेरे
बिखरने दो शब्द मेरे
मिटा दो कविता लिखी जो
पर दे दो वो कुछ शब्द मेरे

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