कल रात की ये बात है....
मैं अकेला (शायद!) अपने कमरे में था।
कि तभी......
अचानक बत्ती गुल हो गई।
और मैंने देखी एक ध्वनि....
तड़पती सी... क्रंदन करती हुई
न जाने कहाँ व्याप्त हो गई वो....
तब से मेरी नींद गायब है (थी)...
यूँ तो पुनः प्रकाश(?) हो गया है
पर क्या यह वही प्रकाश है -
जिसकी मुझे तलाश थी
या फ़िर वो ध्वनि...
कुछ समझ नही सका मैं
एक मित्र (सुभचिन्तक) ने सलाह दी -
सो जाओ! बत्तियां (???) बुझा कर
पर वो ध्वनि (अधूरी सी)
अब भी खोई है मेरी पलकों में...
और शायद यादों में भी....
जाने कब नींद आएगी (इंतजार रहेगा)।
ये एक पागलों सी कहानी है....
पर न जाने क्यों मुझे लग रहा है ये
पागलपन कुछ छिपाना चाहता है मेरे जेहन में
और मैं चाहता हूँ की मैं पागल बना रहूँ.
क्या आपको भी नींद नही आ रही है (?!)
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