रात के तीसरे पहर-
ओस से भींगे पत्ते
ठहरी हुई बूँदें
लुट जाएँगी कल की धुप में यूँ ही।
दूर-दूर से आए हैं परिंदे
कर रहे हैं कलरव
जीवित है ये बस्ती
गम जायेंगे कल की हवा में यूँ ही।
कुछ देर वक्त रुका है
नम है सब कुछ
शीतल हैं ये ऑंखें
तरस जाएँगी कल की सुबह में यूँ ही
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