भरी दोपहर में कॉलबेल की आवाज से तंद्रा टूटी
अनमना सा हो उठा- देखा, डाकिया था
पकड़ा गया एक पुलिंदा खतों का।
क्या मुसीबत है?
पापा के कमरे में उस पुलिंदे को पटक-
सोने जा ही रहा था कि
एक रेशमी लिफाफे पर नजर पड़ी
पलट कर देखा तो मोटे अक्षरों में अपना नाम दिखा।
बहुत तारतम्य से खोला उसे
और मिला अपने अतीत से-
चिहारता हुआ, मुझपे हस्ता हुआ मेरा अतीत।
कि तभी-
माँ ने आवाज दी
और मैं उसे अपनी डाइरी में सहेज
निकल पड़ा एक और कप चाय के लिए !!
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