Friday, July 11, 2008

क्यों

नींद से बोझिल-उनींदी आँखों से,
न चाहते हुए भी बहुत कुछ हूँ देख जाता
प्यास से सूखे-कटे-फटे होठों से
कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ हूँ कह जाता
क्यों? कहाँ? कब? कैसे?
बहुतों सवाल छोड़ जाता हूँ हर पल
फ़िर सोचता हूँ आखिर-
क्यों है इतना पागलपन?
क्यों रूकती है सांसें?
क्या है ये दीवानापन?

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