Friday, July 11, 2008

तुम भूलो अब अपना बचपन

एक कवि की शांत दुनिया
छोटा सा आंगन- छोटी सी कुटीया
अठखेलियाँ खेलते शब्द आंगन में
बड़े हुए, हैं अब यौवन में

चिल्कोर हुआ है अट्टहास
शब्द बने अब हैं गर्जन
कवितायेँ कहती हैं कवि से-
लौटा दो मुझको वो बचपन

कवि कहता है...

चल साथ कहीं अब चलते हैं
मैं छोड़ रहा अब ये आंगन
मैं भूला अपने शब्दों को
तुम भूलो अब अपना बचपन

No comments: