एक कवि की शांत दुनिया
छोटा सा आंगन- छोटी सी कुटीया
अठखेलियाँ खेलते शब्द आंगन में
बड़े हुए, हैं अब यौवन में
चिल्कोर हुआ है अट्टहास
शब्द बने अब हैं गर्जन
कवितायेँ कहती हैं कवि से-
लौटा दो मुझको वो बचपन
कवि कहता है...
चल साथ कहीं अब चलते हैं
मैं छोड़ रहा अब ये आंगन
मैं भूला अपने शब्दों को
तुम भूलो अब अपना बचपन
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