हम ताना बुनते रहते हैं,
वो यूँ आंधी ले आता है,
दो शब्द नही जुड़ पाते औ'
ये वक्त सिमट'ता जाता है
तुम कहते तो हम रुक जाते,
उस रात तुम्हारी यादों में,
अब ज्ञान नही है सपनों का,
गुनते-धुनते दिन जाता है
हर रोज तमाशा होता है !
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment